16 - 02 - 88  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

शिवरात्रि उत्सव पर बापदादा द्वारा दिया गया स्लोगन सदा उत्साह में रहो - उत्सव मनाओ

अपने बच्चों को हर घड़ी उत्साह में रहने की विधि समझाते हुए बापदादा बोले –

आज विश्वेश्वर बाप अपनी विश्व की श्रेष्ठ रचना वा श्रेष्ठ आदि रतनों से, अति स्नेही और समीप बच्चों से मिलन मनाने आये हैं। विश्वेश्वर बाप के बच्चे तो विश्व की सर्व आत्मायें हैं। लेकिन ब्राह्मण आत्मायें अति स्नेही समीप की आत्मायें हैं क्योंकि ब्राह्मण आत्मायें आदि रचना हैं। बाप के साथ - साथ ब्राह्मण आत्मायें भी ब्राह्मण जीवन में अवतरित हो बाप के कार्य में सहयोगी आत्मायें बनती हैं। इसलिए बापदादा आज के दिन बच्चों का ब्राह्मण जीवन के अवतरण का जन्मदिन मनाने आये हैं। बच्चे बाप का जन्मदिन मनाने के लिए उमंग - उत्साह से खुशी में नाच रहे हैं। लेकिन बापदादा बच्चों के इस ब्राह्मण जीवन को देख, स्नेह और सहयोग में, बाप के साथ - साथ हर कार्य में हिम्मत से आगे बढ़ते हुए देख हर्षित हो रहे हैं। तो आप बापदादा का बर्थडे मनाते हो और बाप बच्चों का बर्थडे मनाते। आप ब्राह्मणों का भी बर्थडे है ना। तो सभी को बापदादा, जगत - अम्बा और सर्व आपके साथी एडवांस पार्टी की विशेष श्रेष्ठ आत्मायें सहित आपके अलौकिक ब्राह्मण जन्म के स्नेह से सुनहरी पुष्पों की वर्षा सहित मुबारक हो, मुबारक हो! यह दिल की मुबारक है, सिर्फ मुख की मुबारक नहीं। लेकिन दिलाराम बाप के दिल की मुबारक सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को, चाहे सम्मुख बैठे हैं, चाहे मन से बाप के सम्मुख हैं, चारों ओर के बच्चों को मुबारक हो, मुबारक हो!

आज के दिन भक्त आत्माओं के पास बाप के बिन्दु रूप की विशेष स्मृति रहती हैं। शिव जयन्ति वा शिवरात्रि कोई साकार रूप का यादगार नहीं है। लेकिन निराकार बाप ज्योति - बिन्दु जिसको ‘शिवालिंग' के रूप में पूजते हैं, उस बिन्दु का महत्त्व है। आप सभी के दिल में भी बाप के बिन्दु रूप की स्मृति सदा रहती है। तो आप भी बिन्दु और बाप भी बिन्दु तो आज के दिन भारत में हर एक भक्त आत्मा के अन्दर विशेष बिन्दु रूप का महत्त्व रहता है। बिन्दु जितना ही सूक्ष्म है, उतना ही शक्तिशाली है। इसलिए बिन्दु बाप को ही शक्तियों के, गुणों के, ज्ञान के सिन्धु कहा जाता है।

तो आज सभी बच्चों के दिल में जन्म - दिन की विशेष उत्साह की लहर बापदादा के पास अमृतवेले से पहुँच रही है। जैसे आप बच्चों ने विशेष सेवा अर्थ वा स्नेह स्वरूप बन बाप का झण्डा लहराया, बाप ने कौन - सा झंडा लहराया? आप सभी ने तो शिवबाबा का झण्डा लहराया, बाप क्या यह झण्डा लहरायेंगे? यह सेवा के साकार रूप की जिम्मेवारी बच्चों को दे दी। बाप ने भी झण्डा लहराया लेकिन कौन सा और कहाँ लहराया? बापदादा ने अपने दिल में सभी बच्चों की विशेषताओं के स्नेह का झण्डा लहराया। कितने झण्डे लहराये होंगे? इस दुनिया में इतने झण्डे कोई लहरा नहीं सकते! कितना सुन्दर दृश्य होगा!

एक - एक बच्चे की विशेषता का झण्डा बापदादा के दिल में लहरा रहा है। सिर्फ आप सबने झण्डा नहीं लहराया लेकिन बापदादा ने भी लहराया। यह झण्डा लहराते हो तो उस समय क्या होता है? फूलों की वर्षा। बापदादा भी जब बच्चों की विशेषता का, स्नेह का झण्डा लहराते हैं तो कौन - सी वर्षा होती है? हर एक बच्चे के ऊपर ‘अविनाशी भव', ‘अमर भव', ‘अचल - अडोल भव' - इन वरदानों की वर्षा होती है। यह वरदान ही बापदादा के अविनाशी अलौकिक पुष्प हैं। बापदादा को इस अवतरण - दिवस की अर्थात् शिव जयन्ति दिवस की बच्चों से भी ज्यादा खुशी है, खुशी में खुशी है! क्योंकि यह अवतरण का दिवस हर वर्ष यादगार तो मनाते हैं लेकिन जब बाप का साकार ब्रह्मा तन में अवतरण होता है तो बापदादा को इसमें भी विशेष शिव बाप को विशेष इस बात की खुशी रहती - कितने समय से अपने समीप स्नेही बच्चों से अलग परमधाम में रहते, चाहे परमधाम में और आत्मायें रहती भी हैं लेकिन जो पहली रचना की आत्मायें हैं, जो बाप समान बनने वाली सेवा के साथी आत्मायें हैं, वह कितने समय के बाद अवतरित होने से फिर से आकर मिलती हैं! कितने समय की बिछुड़ी हुई श्रेष्ठ आत्मायें फिर से आकर मिलती हैं! अगर कोई अति स्नेही बिछुड़ा हुआ मिल जाए तो खुशी में विशेष खुशी होगी ना। अवतरण दिवस अर्थात् अपनी आदि रचना से फिर से मिलना। आप सोचेंगे - हमें बाप मिला और बाप कहते हैं - हमें बच्चे मिले! तो बाप को अपने आदि रचना पर नाज़ है। आप सब आदि रचना हो ना, क्षत्रिय तो नहीं हो ना? सभी सूर्यवंशी आदि रचना हैं। ब्राह्मण सो देवता बनते हैं ना। तो ब्राह्मण आत्मायें आदि रचना हैं। अनादि रचना तो सब हैं, सारे विश्व की आत्मायें रचना हैं। लेकिन आप अनादि और आदि रचना हो। तो डबल नशा है ना।

आज के दिन बापदादा विशेष एक स्लोगन दे रहे हैं। आज के दिन को उत्सव का दिन कहा जाता है। शिवरात्रि वा शिवजयन्ति उत्सव मनाते हैं। उत्सव के दिन का यही स्लोगन याद रखना कि ब्राह्मण जीवन की हर घड़ी उत्सव की घड़ी है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् सदा उत्सव मनाना, सदा उत्साह में रहना और सदा हर कर्म में आत्मा को उत्साह दिलाना। तो उत्सव मनाना है, उत्साह में रहना है और उत्साह दिलाना है। जहाँ उत्साह होता है, वहाँ कभी भी, किसी भी प्रकार का विघ्न उत्साह वाली आत्मा को उत्साह से हटा नहीं सकता। जैसे अल्पकाल के उत्साह में सब बातें भूल जाती हैं ना। कोई उत्सव मनाते हो तो उस समय के लिए खुशी के सिवाए और कुछ याद नहीं रहता। तो ब्राह्मण जीवन के लिए हर घड़ी उत्सव है अर्थात् हर घड़ी उत्साह में हैं। तो और कोई बातें आयेंगी क्या? कोई भी हद के उत्सव में जायेंगे तो वहाँ क्या होता है? नाचना, गाना, खेल देखना और खाना - यही होता है ना। तो बा्रह्मण जीवन के उत्सव में सारा दिन क्या करते हो? सेवा भी करते हो तो खेल समझ करते हो ना या बोझ लगता है? आजकल की दुनिया में कोई भी अज्ञानी आत्मायें थोड़ा भी दिमाग का काम करेंगी तो कहेंगी - बहुत थक गए हैं, दिमाग के ऊपर काम का बहुत बोझ है! और आप सेवा करके आते हो तो क्या कहते हो - सेवा का मेवा खा के आये हैं। क्योंकि जितनी बड़ी ते बड़ी सेवा के निमित्त बनते हो, उतना ही सेवा का प्रत्यक्ष फल बहुत बढ़िया और बड़ा मिलता है। तो प्रत्यक्ष फल खाने से और ही शक्ति आ जाती है ना। खुशी की शक्ति बढ़ जाती है, इसलिए चाहे कितना भी शरीर का सख्त कार्य हो वा प्लैन बनवाने का दिमाग का कार्य हो लेकिन आपको थकावट नहीं होगी। रात है वा दिन है - यह पता नहीं पड़ता है ना। अगर घड़ी आपके पास नहीं होती तो मालूम पड़ता क्या कि कितना बज गया? लेकिन उत्सव मना रहे हो, इसलिए सेवा उत्साह दिलाती है और उत्साह अनुभव कराती है।

ब्राह्मण जीवन में एक तो है सेवा, दूसरा क्या होता है? माया आती है। माया का सुनकर हसते हो क्योंकि समझते हैं कि माया को हमारे से ज्यादा प्यार है! आपका प्यार नहीं है, उनका प्यार है। उत्सव में खेल भी देखा जाता है। आजकल सबको ज्यादा खेल कौन - सा पसन्द आता है? मिक्की - माउस का खेल बहुत करते हैं। एडवरटाइज भी मिक्की - माउस के खेल में दिखाते हैं। चाहे मैच पसन्द करते, चाहे मिक्की - माउस का खेल पसन्द करते हो। तो यहाँ भी माया आती है तो मैच करो, निशाना लगाओ। खेल में क्या करते हो? गेंद आता है और आप फिर दूसरी तरफ फेंकते हो और कैच कर लेते हो तो विजयी बन जाते हो। ऐसे ही माया के यह गेंद हैं - कभी ‘काम' के रूप में आते, कभी ‘क्रोध' के रूप में। यह कैच करो कि यह माया का खेल है। अगर माया के खेल को खेल समझ करो तो उत्साह बढ़ेगा और अगर माया की कोई भी परिस्थिति को दुश्मन समझ देखते हो तो घबरा जाते हो। मिक्की - माउस खेल में कभी बन्दर आ जाता, कभी बिल्ली, कभी कुत्ता, कभी चूहा आ जाता लेकिन आप घबराते हो क्या? मजा आता है ना देखने में। तो यह भी उत्सव के रूप में माया के भिन्न - भिन्न परिस्थितियोँ का खेल देखो। खेल देखने में कोई घबरा जाए तो क्या कहेंगे? खेल देखते - देखते भी कोई सोच ले कि गेंद मेरे पास ही आ रहा है, मेरे को ही न लग जाए तो खेल देख सकेंगा? तो खुशी और मजे से खेल देखो, माया से घबराओ नहीं। एक मनोरंजन समझो। चाहे शेर के रूप में आ जाए - घबराओ नहीं। यही स्मृति रखो कि ब्राह्मण जीवन की हर घड़ी उत्सव है, उत्साह है। उसी के बीच ये खेल भी देख रहे हैं, खुशी में नाच भी रहे हैं और बाप के ब्राह्मण परिवार के विशेषताओं के, गुणों के गीत भी गा रहे हैं और ब्रह्मा भोजन भी मजे से खा रहे हैं।

आप जैसा शुद्ध भोजन, याद का भोजन विश्व में किसको भी प्राप्त नहीं है! इस भोजन को ही कहा जाता है - दु:ख भंजन भोजन। याद का भोजन सब दु:ख दूर कर देता है। क्योंकि शुद्ध अन्न से मन और तन दोनों शुद्ध हो जाता हैं। अगर धन भी अशुद्ध आता है तो अशुद्ध धन खुशी को गायब कर देता है, चिंता को लाता है। जितना अशुद्ध धन आता, माना धन आयेगा एक लाख लेकिन चिंता आयेगी पद्मगुणा और चिंता को सदैव चिता कहा जाता है। तो चिता पर बैठने वाले को कभी खुशी कैसी होगी! और अशुद्ध धन भी अशुद्ध मन से आता है, पहले मन में अशुद्ध संकल्प आता है। लेकिन शुद्ध अन्न मन को शुद्ध बना देता है इसलिए धन भी शुद्ध हो जाता है। याद के अन्न का महत्त्व है, इसलिए ब्रह्मा भोजन की महिमा है। अगर याद में नहीं बनाते और खाते तो यह अन्न स्थिति को ऊपर नीचे कर सकता है। याद में बनाया हुआ और याद में स्वीकार करने वाला अन्न दवाई का भी काम करता और दुवा का भी काम करता। याद का अन्न कभी नुकसान नहीं कर सकता।

इसलिए हर घड़ी उत्सव मनाओ। माया किस भी रूप में आये। अच्छा! मोह के रूप में आती है तो समझो बन्दर का खेल दिखाने के लिए आई है। खेल को साक्षी होकर देखो, स्वयं माया के चक्र में न आ जाओ। चक्र में आते हो तो घबराते हो। आजकल छोटे - छोटे बच्चों को ऐसे मनोरंजन के खेल कराते हैं ऊँचा भी चढ़ायेंगे, नीचे भी लायेंगे। तो यह मनोरंजन है, खेल है। कोई भी रूप में आये, यह मिक्की माउस का खेल देखो। जो आता है वह जाता भी है। माया किसी भी रूप में आती है तो अभी - अभी आई, अभी - अभी गई। आप माया के साथ श्रेष्ठ स्थिति से चले न जाओ, माया को जाने दो। आप उसके साथ क्यों जाते हो? खेल में होता ही ऐसे है - कुछ आयेगा, कुछ जायेगा, कुछ बदलेगा। अगर सीन बदली न हो तो खेल अच्छा ही नहीं लगेगा। माया भी किसी भी रूप से आए, जो भी सीन आती है वह बदलनी जरूर है। तो सीन बदलती रहे लेकिन आपकी श्रेष्ठ स्थिति नहीं बदले। कोई भी खेल में कोई पार्ट बजाता है तो आप भी उसके साथ ऐसे ही भागने वा दौड़ने लग जायेंगे क्या? देखने वाले तो सिर्फ देखते रहेंगे ना। तो माया नीचे गिराने के लिए आये या कोई भी स्वरूप में आये लेकिन आप उसका खेल देखो। कैसे नीचे गिराने के लिए आई, उसके रूप को कैच करो और खेल समझ उस दृश्य को साक्षी हो करके देखो। आगे के लिए और स्व की स्थिति को मजबूत बनाने की शिक्षा ले आगे बढ़ो।

तो शिवरात्रि का उत्सव अर्थात् उत्साह दिलाने वाला उत्सव सिर्फ आज का दिन नहीं है लेकिन सदा ही आपके लिए उत्सव है और उत्साह साथ है। इस स्लोगन को सदा याद रखना और अनुभव करते रहना। उसकी विधि सिर्फ दो शब्दों की है। ‘सदा साक्षी हो करके देखना और बाप के साथी बन करके रहना।' बाप के साथी सदा रहेंगे तो जहाँ बाप है तो साक्षी होकर देखने से सहज ही मायाजीत बन अनेक जन्मों के लिए जगतीत बन जायेंगे। तो समझा, क्या करना है? स्वयं बाप हर बच्चे को साथ देने के लिए गोल्डन ऑफर कर रहे हैं। इसलिए सदा साथ रहो। वैसे डबल फॉरेनर्स अकेले रहने में पसंद करते हैं। वह इसलिए साथ नहीं रहते कि वहाँ बंधन में न बंध जाएँ, स्वतन्त्र रहें। लेकिन इस साथ में साथ रहते भी स्वतन्त्र हैं, बंधन नहीं अनुभव होगा। अच्छा!

तो आज का दिन डबल उत्सव का है। वैसे जीवन भी उत्सव है और यादगार - उत्सव भी है। बापदादा सभी विदेश के बच्चों को सदा याद करते भी हैं और आज भी विशेष दिन की याद दे रहे हैं। क्योंकि जो भी जहाँ से आये होंगे तो सभी के याद - पत्र लाए होंगे। कार्ड, पत्र, टोलियाँ लाई। तो जिन बच्चों ने दिल का उत्साह का यादप्यार वा किसी भी रूप से अपनी याद - निशानी भेजी है, उन सब बच्चों को बापदादा भी विशेष याद का रिटर्न पद्मगुणा दे रहें हैं और बापदादा देख रहे हैं कि हर एक बच्चे के अन्दर सेवा का और सदा मायाजीत बनने का उमंग - उत्साह बहुत अच्छा है। हर एक बच्चा अपनी शक्ति से भी ज्यादा सेवा में आगे बढ़ रहा है और बढ़ता ही रहेगा। बाकी जो सच्ची दिल से दिल का समाचार बाप के आगे रखते हैं, तो सच्ची दिल पर बाप सदा राजी है। इसलिए दिल के समाचार में जो भी कोई छोटी - छोटी बातें आती भी हैं तो वह बाप की विशेष याद के वरदान से समाप्त हो ही जायेंगी। बाप का राजी होना अर्थात् सहज बाप की मदद से मायाजीत बनना। इसलिए जो बाप को दे दिया, चाहे समाचार के रूप में, पत्र के रूप में, रूह - रूहान के रूप में - जब बाप के आगे रख लिया, दे दिया तो जो चीज़ किसको दी जाती है वह अपनी नहीं रहती, वह दूसरे की हो जाती है। अगर कमज़ोरी का संकल्प भी बाप के आगे रख दिया तो वह कमज़ोरी आपकी नहीं रहीं। आपने दे दी, उससे मुक्त हो गये। इसलिए, यही याद रखना कि मैंने बाप के आगे रख दी अर्थात् दे दी। बाकी विदेश के उमंग - उत्साह की लहर अच्छी चल रही है। बापदादा बच्चों को निर्विघ्न बनने के उमंग और सेवा में बाप को प्रत्यक्ष करने के उमंग को देख हर्षित होते हैं।

बाकी जिन्हों का भी यादप्यार लाया है, सभी को यादप्यार और साथ - साथ वर्से के अधिकारी बनने का अविनाशी वरदान सदा बाप का है और रहेगा। आप दूर देश से आये हैं। बाप तो आपसे भी दूर से आये हैं! लेकिन आप बच्चों के लिए दूरदेश भी समीप बन गया, इसलिए दूर नहीं लगता। बिना खर्चे के रूहानी राकेट बहुत तेज है। वह लोग तो एक राकेट पर कितना खर्चा करते हैं। आपने क्या खर्चा किया और कितने में पहुँच जाते हो! आप सब का घर है स्वीट होम। इसलिए अधिकारी बच्चे हो, सेकण्ड में पहुँच जाते हो। अच्छा!

सदा अनादि और आदि रचना के रूहानी नशे में रहने वाले, सदा हर घड़ी उत्सव समान मनाने वाले, सदा याद और सेवा के उत्साह में रहने वाले, सदा माया की हर परिस्थिति को खेल समझ साक्षी हो देखने वाले, सदा बाप के साथ हर कदम में साथी बन चलने वाले, ऐसे सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण आत्माओं को अलौकिक जन्म की मुबारक के साथ - साथ यादप्यार और नमस्ते।''

52वीं त्रिमूर्ति शिवजयन्ति पर अव्यक्त बापदादा ने स्वयं झण्डा लहराया तथा मधुर महावाक्य उच्चारण किये

‘‘सभी अति स्नेही, दिलतख्तनशीन बच्चों को पावन 52वीं शिजयन्ति की पद्मगुणा यादप्यार और मुबारक।''